अजंता भाग १
आज मैं आपको भारत के चित्रकारी के ह्रदय से मिलाने का प्रयास करने वाली हूँ,
क्या आप अनुमान लगा सकते हैं,
शायद सभी समझ गये होंगे कि मैं किसकी बात कर रही हूँ।
जी- मैं बात कर रही हूँ अजंता की अप्रतिम अपरिहार्य एवम् अपने युग की अविस्मरणीय चित्रकारी की।
इनकी चित्रकारी को समझने के लिए हमें सूक्ष्म में भगवान बुद्ध का जीवन परिचय जान लेना चाहिए, इससे न केवल हम गहराई से इसके महत्व को समझ पायेंगे बल्कि विद्यार्थी आसानी से इनकी चित्रकारी के नाम भी याद कर पायेंगे। मैं कहानी के साथ जो मुझे स्मरण में आ रहे हैं उन सभी चित्रों के नाम भी अंकित करती जाऊँगी और एक बार पुनः जब उनको गुफाओं के नंबर के साथ दोहराऊंगी तो आपको ये नाम आसानी से याद हो जायेंगे। इसके अलावा आपको अन्य भी रोचक प्रश्नों के उत्तर मिलते जायेंगे अतः आप इस ब्लॉग को पूरा पढ़ें –
भगवान् बुद्ध जिनका वास्तविक नाम सिद्धार्थ था एवं वे राजा शुद्धोधन के पुत्र थे। उनकी जन्म देने वाली माँ – मायादेवी थीं एक दिन जब बुद्ध गर्भ में थे तो उन्हें स्वप्न में कमल के दर्शन हुए ( मायादेवी का स्वप्न (चित्र )), सिद्धार्थ को जन्म देने के बाद संभवतः ७ दिनों में उनका स्वर्गवास हो गया तथा सिद्धार्थ का पालन पोषण उनकी बहन प्रजापति गौतमी ने किया था -जो कि उनकी दत्तक माँ भी थीं एवं बुद्ध के संघ में प्रवेश करने वाली वे प्रथम महिला थीं। जिनसे राजा शुद्धोधन को एक अन्य पुत्र प्राप्त हुआ जिनका नाम नन्द था जिनके अनेक चित्र – नन्द तथा सुंदरी की कथा , नन्द की दीक्षा , नन्द का वैराग्य – भिक्षु होना आदि प्राप्त होते हैं। सिद्धार्थ लुम्बनी में पैदा हुए थे। इनके जन्म के समय ही शाक्त मुनि ने इनके सन्यासी होने की भविष्यवाणी की थी। राजा ने इस डर से इन्हें अत्यधिक ऐशो आराम में रखा एवं पढाई पूरी होते ही इनका विवाह यशोधरा के साथ कर दिया (इनके विवाह में उस समय की सर्वश्रेष्ठ सुंदरी एवं वैशाली की नगर वधु आम्रपाली भी आई थी जो कि बाद में भिक्षुणी बन गई थी साथ ही मगध नरेश बिंबसार जिनका पुत्र अजातशत्रु था जो कि अत्यधिक क्रूर राजा था – इससे संबधित चित्र हैं – अजातशत्रु और बुद्ध की भेंट एवं अजातशत्रु की पत्नी) भी आये थे।
एवं यशोधरा से इन्हें राहुल नाम का पुत्र प्राप्त हुआ। लेकिन शुरू से ही इनका वैरागी एवं अहिंसक मन संसार के दुःखों को देख कर इतना व्यथित हो गया कि वे प्रत्येक प्राणी के दुःखों को दूर करने के उपाय सोचने लगे , पति की इस पीड़ा से व्यथित यशोधरा को लगा कि यदि वे महल में रहेंगे तो शायद कुछ अनहोनी न हो जाये एवं बुद्ध ने भी आश्वासन दिया कि वे अपने प्रश्नों का उत्तर मिलने पर लौट आयेंगे। यशोधरा के पति के जाने बाद का चित्र मरणासन्न राजकुमारी एवं बुद्ध का गृह त्याग के रूप में चित्रित है।
बुद्ध ने अलार कलाम से दीक्षा ली एवं योग के चरम बिंदुओं को पाया लेकिन फिर भी प्रश्न बाकी थे तो उन्होंने विचार किया कि जब तक उन्हें उनके प्रश्नों के उत्तर नहीं मिलेंगे वे अन्न ग्रहण नहीं करेंगे , वे वैट वृक्ष के नीचे ध्यान में स्थित थे – तभी वहाँ सुजाता नाम की स्त्री आई – उसे लगा कि वृक्षदेवता ही मानो पूजा लेने के लिए शरीर धरकर बैठे हैं। सुजाता ने बड़े आदर से सिद्धार्थ को खीर भेंट की और कहा- ‘जैसे मेरी मनोकामना पूरी हुई, उसी तरह आपकी भी हो।’ इस घटना से संबधित चित्र है सुजाता की खीर।
उसी रात को ध्यान लगाने पर सिद्धार्थ की साधना सफल हुई। उसे सच्चा बोध हुआ, तभी से वे ‘बुद्ध’ कहलाए। जिस वृक्ष के नीचे सिद्धार्थ को बोध प्राप्त हुआ, उसका नाम है बोधिवृक्ष (पीपल का पेड़ ) है और जिस स्थान की यह घटना है, वह है बोधगया।
हाँ बीच में साधना के अंतर्गत कामदेव पर विजय ( मार विजय ), पूर्व जन्म कथाएं ( छ्दंत जातक, हस्ती जातक , महाहंसजातक , चीटियों के पहाड़ पर सांप की तपस्या आदि पूर्व जन्म के चित्र हैं जिन्हें जातक कथाओं के नाम से जाना जाता है ) आदि विभिन्न प्रकरण भी उनके जीवन में घटित हुए।
बोध प्राप्त होने के बाद – आषाढ़ की पूर्णिमा को भगवान बुद्ध काशी के पास मृगदाव वर्तमान में जिसे सारनाथ कहते हैं – वहीं पर उन्होंने सबसे पहला धर्मोपदेश दिया। भगवान बुद्ध ने मध्यम मार्ग अपनाने के लिए लोगों से कहा। दुःख, उसके कारण और निवारण के लिए अष्टांगिक मार्ग सुझाया। अहिंसा पर बड़ा जोर दिया। यज्ञ और पशु-बलि की निंदा की।
80 वर्ष की उम्र तक भगवान बुद्ध ने धर्म का सीधी-सरल लोकभाषा – पाली में प्रचार किया। उनकी सच्ची-सीधी बातें जनमानस को स्पर्श करती थीं। लोग आकर उनसे दीक्षा लेने लगे। यहाँ अँगुलीमार एवं अजातशत्रु जैसे क्रूर लोगों के ह्रदय परिवर्तन की कथा प्रचलित है। यहां सम्राट अशोक का नाम भी उल्लेखनीय है जो कि मौर्य वंशके महान शासक – चन्द्रगुप्त के पौत्र थे एवं कलिंग युद्ध के पश्चात उन्होंने बौद्ध धर्म अपना लिया था एवं विभिन्न एशियाई देशों में ८४००० स्तूपों का निर्माण करवाया। इनके पुत्र महेन्द्र, एवं पुत्री संघमित्रा का नाम भी बौद्ध धर्म के प्रचार में उल्लेखनीय स्थान रखता है।
अब हम बीच में जो कहानी अधूरी रह गई उसे पूरा करते हैं – ज्ञान प्राप्त करने के बाद बुद्ध लुम्बनी जाते हैं , एवं जिस नगर के लोगों को वो दान दिया करते थे – आज वो वहां भिक्षा मांगते हैं -( राज गृह की गलियों में भिक्षा पात्र लिए बुद्ध ) , पिता नाराज़ भी हैं और इस विचार में भी हैं कि शायद अब यह लौट आये , बुद्ध के पुत्र राहुल नौ वर्ष के हो चुके थे व अपनी माता से पिता की वीरता एवं महानता के विषय में सुनते रहते थे , अब सिद्धार्थ – बुद्ध के रूप में प्रेम का रूप हो चुके थे, सभी के प्रति प्रेम रखने वाले बुद्ध ने पुत्र को ह्रदय से लगाया।
यशोधरा बुद्ध की पत्नी थीं वे जान गई थीं अब वे सूर्य का प्रकाश बन चुके हैं जिस प्रकाश पर सारे विश्व का अधिकार है, बुद्ध ने जब अपना भिक्षा पात्र आगे किया तो यशोधरा ने राहुल का समर्पण कर दिया , क्योंकि इससे कम और अधिक वह देती भी क्या , सम्बंधित चित्र – माता पुत्र जिसे राहुल समर्पण के नाम से भी जानते हैं जो कि अजंता के पद्मपाणि के बाद दूसरा सबसे प्रसिद्ध चित्र है।
अस्सी वर्षों तक धर्मोपदेश देने के बाद उनका महानिर्वाण कुशीनगर नामक स्थान पर हुआ।
तो ये थी भगवान् बुद्ध की कहानी क्योंकि इनके जन्म से लेकर कोई भी घटना क्रम नेट व अन्य प्रश्नपत्रों में पूछा जा सकता है तो इसलिए मैंने विद्यार्थियों की एवं पाठकों की रूचि के लिए सम्पूर्ण वृतांत को सीमित कर बताने का प्रयास किया है।
अभी क्यूंकि यह विषय काफी विस्तृत है इसलिए मुख्य बिंदुओं के साथ हम इसकी चर्चा अगले भाग में करेंगे।
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